Tuesday 27 June 2017

सुकून...



क्यों मुझे सुकून नहीं है?

दोज़ख़् में ना जन्नत में
 किसी मुरीद की मन्नत में

हमसफर की बाहों में
पेड़ों से लबालब राहों में

क्यों मुझे सुकून नहीं है?

सुर से सजे तरानों में
परियों के अफ़सानों में

अपने माज़ी के मलालों में
अंजाने कल के सवालों में

क्यों मुझे सुकून नहीं है?

आँखों से बहते आब में
चार बोतल शराब में

मेरी कलम से निकले शेरों में
ज़ेह्नीयत के फेरों में

क्यों मुझे सुकून नहीं है?

                             (अनुराग)





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