Wednesday 31 January 2018

तोहफा



जो टूट सके, ना फूट सके
यारों की तरह ना रूठ सके
चाँदी की हवस नहीं मुझको
पीतल का इक खिलौना ला दो

लिहाफ़ में हो नींद नज़रबंद
तकिये में ख्वाबों के पैबंद
मखमली नहीं, पत्थर ही सही
तोहफे में इक बिछौना ला दो

बिछड़े यारों के संग गुफ्तगू
पहले प्यार की पाक जुस्त्जू
नहीं ला सकते तो इतना करदो
हर दफ़्न गुनाह, घिनौना ला दो

ना रिसे कभी, ना सूखा ही रहे
बस मुँह बाए, भूखा ही रहे
मेरे हिस्से का ज़ख़्म, दर्द बकाया
पूरा, आधा, पौना ला दो
                                 (अनुराग शौरी)




Wednesday 24 January 2018

“गुज़ारिश”


“गुज़ारिश”

जो दर्द की बात मैं छेड़ूँगा
तुम रुदन का राग सुनाओगे
इक टूटे दिल के तीखे नश्तर
कोई  दिल तुम क्या बहलाओगे
इक छल्नी जिस्म को ढोते हो
मेरे ज़ख़्म को क्या सहलाओगे
ना नींद ही है, ना आस ही है
ख्वाबों को कैसे सजाओगे?
है भार तुम्हारे कंधों पे
क्या मेरी लाश उठाओगे
है एक गुज़ारिश तुमसे फिर भी
मुझे मंज़िल तक ले जाओगे?
हमदर्द नहीं, और दोस्त नहीं
क्या हमराही बन पाओगे?

                                         (अनुराग शौरी)