Monday 20 March 2017

ख्वाहिशें...



माथे पे हल्की सी शिकन
आँखों में छलकी सी थकन
कुछ उदास ख्याल, पेचीदा से
पिघलती हुई शाम सा मन

सब हासिल हैं रोज़ मुझे
जब काम से घर लौट आता हूँ
चुनिंदा सपने बेच- बेच
राशन की थैली लाता हूँ

रुतबा भी है, पैसा भी है
शोहरत भी मिल ही जाती है
ख्वाहिशें सुलाने के लिए
इक रजाई सिल ही जाती है
                     (अनुराग)









Thursday 16 March 2017

दिल्लगी...


नहीं रास आई तो क्या हुआ
 बद-हवास ज़िंदगी ही तो है

 सजदासर-ए-बाज़ार नहीं लाज़मी 
 बेअदब सी बंदगी ही तो है

 तेरे कहने पे छोड़ दी महफ़िल
 ये हमारी सादगी ही तो है

 गैर मुनासिब होगा अहद--वफ़ा 
 इश्क नहीं, दिल्लगी ही तो है


                                               (अनुराग)


Thursday 2 March 2017

है छात्र तेरी यही कहानी...


है छात्र तेरी यही कहानी
हाथों में किताब, आँखों में पानी
पढ़ने में बीत जाएगा बचपन तेरा
पढ़ने में ढल जाएगी, तेरी जवानी

बुरा हाल तेरा आज है
सिर पर तेरे काँटों का ताज है
जो दुर्गति तेरी कल होगी
वो आज तू सुन ले मेरी ज़ुबानी

जब परीक्षा के दिन आएँगे
विपदा के काले बादल छाएंगे
तब तू ये जान ही लेगा
कि पढ़ाई तेरी है दुश्मन जानी

खेलना कूदना सब बंद होगा
चिंता से वज़न भी कुछ कम होगा
घर जेलखाने में तबदील होगा
एक दुखद मोड़ लेगी तेरी रामकहानी

परीक्षा के बाद भी, ना गम तेरे कम होंगे
फेल हुआ; बे-इंतेहा सितम होंगे
और अगर  पास हो भी गया तो
चन्द रोज़ ही चलेगी तेरी मनमानी

मालिक ने तक़दीर ही ऐसी बनाई है
तेरे आगे कुआँ, पीछे खाई है
पढ़ाई तो ऐसी नागिन है
जिसका काटा ना माँगे पानी

है छात्र तेरी यही कहानी
हाथों में किताब, आँखों में पानी…

                             (अनुराग)