Friday 22 February 2019

सिगरेट





तसव्वुर में जिनके हम
कश लगाया करते थे
धुएँ के छल्लों से जिनका
अक़्स बनाया करते थे
आज वो नहीं हैं ज़हन में
बस यादें हैं धुंधली सी
कंधे हैं कुछ भारी से
इक सिगरेट है अध-जली सी…
(अनुराग शौरी)

सियासत






 रेत का इक ज़र्रा, बवंडर बन ना जाए
शबनम की इक बूँद, समंदर बन ना जाए
घुटनों पे चलने वाला, सिकंदर बन ना जाए
काफ़िर की औलाद, पैगंबर बन ना जाए
सियासतदान हैं ख़ौफ़-ज़दा
रोटी को तरसती जनता, कलंदर बन ना जाए

(अनुराग शौरी)

DAWN





The dawn of new dreams
The dusk of a broken few.
The insomniac nights
And virgin rosy dew.
Some uncharted roads
And destinations new.
I welcome all heartily
As long as I’m with you.

(Anurag Shourie)