Sunday 25 June 2017

पागल...




वो खुदा से बातें करता है
लोगों पे फ़िकरे कसता है
कभी चीखता, दिन भर रोता,
कभी बेवजह ही हंसता है

घर नहीं है शायद कहीं उसका,
आवारा, गलियों में वो बस्ता है
पागल की तोहमत माथे पे,
उसका साथी, तपता रास्ता है

इक शिकन नहीं चेहरे पे उसके
वो तो बेफिक्री का फरिश्ता है
प्यार, मुहब्बत, नफ़रत, लालच
किसी शह से ना वाबस्ता है

ख़ौफ़ है मुझे साए से उसके
मानों उससे क़हर बरसता है
नज़रें झुका, होंठों को सिल
ये काफ़िर, किनारे से गुज़रता है

मन ही मन जलता हूँ लेकिन
दिल का लहू भी रिस्ता है
इक दीवाने की हस्ती पाने को
मेरा ये वजूद तरसता है
                       (अनुराग)



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