Wednesday 18 January 2017

कशमकश

कशमकश

मरने का ख़ौफ़ ज़िंदा है
ज़िंदा रहने का शौक़ मर गया
जो क्षितिज से बातें करता था
वो पंछी थक के घर गया
काँच का ताना बाना था
टूट के हर सपना बिखर गया
जो जाम कभी ना छ्लका था
दिल के नीरों से भर गया

कुछ लिखना है शायद मुझको
पन्ने अभी भी खाली हैं
रात अभी तक ढ़ली नहीं
स्याही अभी तक काली है
चन्द साँसें और उधार सही
उमर  कलम की बाली है
जो सुनी नहीं कभी तुमने
वो कहानी अभी ख़याली है...
                                                   अनुराग
                                      
                                     

3 comments:

  1. TERI QALAM SE SUNN NA CHAHTAY HAI,
    VO EK BAAT JO ANKAHI HAI,
    SHAB E FIRAQ HAI, TERE LAFZO'N KA INTEZAR HAI
    SAANS ALVIDA KAH RHI HAI, NAZRO'N KO TERI TALASH HAI…

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