Wednesday 5 April 2017

जाम...




पा लिया जिस भी शह को
दिल से वो उतर गयी
वस्ल की रातें बेमानी
धुंधली उल्फ़त की सहर गयी
ख्वाब सजते बिखरते रहे
ज़िंदगी यूँ ही गुज़र गयी
इक जाम अभी भी बाकी है
साँस, कमबख्त ठहर गयी...

                                        (अनुराग)

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