काले पानी में अक्स तेरा
मैला दिखता है, सॉफ नहीं
काई की परतें माज़ी पे
उजला यादों का गिलाफ नहीं
हर कोशिश नाकाम सी है
मुझ को तुझ तक लाने की
फलक में क्या कोई तारा है
जो शिद्दत से मेरे खिलाफ नही?
कोई जुम्बिश अब न बाकी है
पत्थर होते अल्फाज़ों में
खामोश कलम किस से बोले
स्याही को मिला इंसाफ़ नहीं…
(अनुराग)
Good. Compelling!
ReplyDeleteThank you, Sir...
DeletePhir bhi saans baaki hai,
ReplyDeleteDhadkan tera naam dohraati hai...
...
Nice lines...
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