The Voiceless Soliloquy
Tuesday, 7 February 2017
एहसास...
एहसास
जो तुम मानो, तो मैं तुम्हारा
ना समझो, तो इक वहंम सही
वो सपना जो अधूरा रहा
तुम्हारी ज़िद, तुम्हारा अहम् सही
काँच की तीखी नोक सरीखा
सुलगते सीने की खलिश सही
जो रो दो तो इक चीख हूँ मैं
गा लो…तो इक बंदिश सही
(अनुराग)
2 comments:
Ruchika
2 May 2017 at 11:35
Great, So true
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Anurag Shourie
2 May 2017 at 21:03
Thanks a ton.
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Great, So true
ReplyDeleteThanks a ton.
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