Tuesday, 11 September 2018

शहर




आगोश में तेरे रात कटे
ज़ुल्फ़ों में हर सहर हो
शाम हो धुंधले सायों सी
और भीगी सी दोपहर हो
होंठों से अब्र सा बरसे
मीठा सा इक ज़हर हो
बसर जहाँ हो ज़िंदगी
तेरी आँखों में इक शहर हो
                 (अनुराग शौरी)

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