मन जीते जग जीत है
निर्मल खुद से प्रीत
है
जो समझ गया,
वो पार लगा
यही जगत की
रीत है
धूप बहुत है
रस्ते में
सामान बहुत है बस्ते
में
पर तू कदम
बदाए जा
नहीं मिलता कुछ
भी सस्ते में
इक सपना है
पास अगर
कुछ पाने की
है आस अगर
तुझको मिल ही जाएगा
मन में है
विश्वास अगर
मन जीते जग
जीत है
निर्मल खुद से प्रीत
है
(अनुराग शौरी)
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