Wednesday, 21 February 2018

"वक़्त "









बीत चुका है वो लम्हा
गुज़र जाएगा ये पल भी

ना संग रही कल की घड़ियाँ
बेवफा, आनेवाला कल भी

ये वक़्त सरकता  जाएगा
है रेत सा, कभी जल भी

तू भी बह जा, बदली बन जा
छू अंबर, चूम धरातल भी

                         (अनुराग शौरी)

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