माथे पे हल्की सी शिकन
आँखों में छलकी सी
थकन
कुछ उदास ख्याल, पेचीदा
से
पिघलती हुई शाम सा
मन
सब हासिल हैं रोज़
मुझे
जब काम से घर लौट आता
हूँ
चुनिंदा सपने बेच-
बेच
राशन की थैली लाता
हूँ
रुतबा भी है, पैसा
भी है
शोहरत भी मिल ही जाती
है
ख्वाहिशें सुलाने के
लिए
इक रजाई सिल ही जाती है
(अनुराग)
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