हाथों में किताब,
आँखों में पानी
पढ़ने में बीत
जाएगा बचपन तेरा
पढ़ने में ढल
जाएगी, तेरी जवानी
बुरा हाल
तेरा आज है
सिर पर
तेरे काँटों का
ताज है
जो दुर्गति
तेरी कल होगी
वो आज
तू सुन ले
मेरी ज़ुबानी
जब परीक्षा
के दिन आएँगे
विपदा के काले
बादल छाएंगे
तब तू
ये जान ही लेगा
कि पढ़ाई तेरी
है दुश्मन जानी
खेलना कूदना सब
बंद होगा
चिंता से वज़न
भी कुछ कम
होगा
घर जेलखाने
में तबदील होगा
एक दुखद मोड़ लेगी
तेरी रामकहानी
परीक्षा के बाद
भी, ना गम
तेरे कम होंगे
फेल हुआ;
बे-इंतेहा सितम
होंगे
और अगर पास
हो भी गया
तो
चन्द रोज़ ही चलेगी तेरी मनमानी
मालिक ने तक़दीर ही
ऐसी बनाई है
तेरे आगे कुआँ, पीछे
खाई है
पढ़ाई तो ऐसी नागिन
है
जिसका काटा ना
माँगे पानी
है छात्र
तेरी यही कहानी
हाथों में किताब,
आँखों में पानी…
(अनुराग)
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