The Voiceless Soliloquy
Friday, 22 February 2019
सियासत
रेत का इक ज़र्रा, बवंडर बन ना जाए
शबनम की इक बूँद, समंदर बन ना जाए
घुटनों पे चलने वाला, सिकंदर बन ना जाए
काफ़िर की औलाद, पैगंबर बन ना जाए
सियासतदान हैं ख़ौफ़-ज़दा
रोटी को तरसती जनता, कलंदर बन ना जाए
(अनुराग शौरी)
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