तसव्वुर में जिनके हम
कश लगाया करते थे
धुएँ के छल्लों से जिनका
अक़्स बनाया करते थे
आज वो नहीं हैं ज़हन में
बस यादें हैं धुंधली सी
कंधे हैं कुछ भारी से
इक सिगरेट है अध-जली सी…
रेत का इक ज़र्रा, बवंडर बन ना जाए शबनम की इक बूँद, समंदर बन ना जाए घुटनों पे चलने वाला, सिकंदर बन ना जाए काफ़िर की औलाद, पैगंबर बन ना जाए सियासतदान हैं ख़ौफ़-ज़दा रोटी को तरसती जनता, कलंदर बन ना जाए
The dawn of new dreams The dusk of a broken few. The insomniac nights And virgin rosy dew. Some uncharted roads And destinations new. I welcome all heartily As long as I’m with you.