जन्नत का तलबगार
नहीं मैं
इक अदद
ज़िंदगी, बस नसीब
हो
थोड़ी सी मुहब्बत,
कुछ सुकून
इक हमदर्द, जो दिल के करीब
हो...
बारिश में भीगते
बूढ़े सनोबर
बादलों से ढके
ऊँचे पहाड़
वादियों की पेचीदा सड़कें
हर रास्ता
जहाँ बे-.तरतीब
हो...
छोटा ही
सही, महफूज़ घरोंदा
आँगन में
गुलशन-ए-बहार
हो
परिंदों की महफ़िल सजे जब-जब
कोयल का
रुतबा हसीब हो...
पास ही
इक घना सा
जंगल
हुकूमत हिरण की
चलती हो
शेर और
चीते अमन पसंद
बाज़ फ़ितरत
से अदीब हो...
जन्नत का तलबगार नहीं
मैं
इक अदद
ज़िंदगी, बस नसीब
हो
थोड़ी सी मुहब्बत,
कुछ सुकून
इक हमदर्द,
जो दिल के करीब
हो...
very nice
ReplyDeleteThanks...
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