कशमकश
मरने का ख़ौफ़ ज़िंदा है
ज़िंदा रहने का शौक़ मर गया
जो क्षितिज से बातें करता था
वो पंछी थक के घर गया
काँच का ताना बाना था
टूट के हर सपना बिखर गया
जो जाम कभी ना छ्लका था
दिल के नीरों से भर गया
कुछ लिखना है शायद मुझको
पन्ने अभी भी खाली हैं
रात अभी तक ढ़ली नहीं
स्याही अभी तक काली है
चन्द साँसें
और उधार सही
उमर कलम
की बाली है
जो सुनी
नहीं कभी तुमने
वो कहानी
अभी ख़याली है...
अनुराग